नमस्कार दोस्तों,
2 दिन पहले ही मोतिहारी, बिहार से लौटी हूँ| डेढ़ साल बाद जा पाई थी, पढ़ाई के सिलसिले में वैसे तो 2007 से ही बिहार के बाहर रहती हूँ... पर 5-6 दिन की छुट्टी लेकर जाती रहती हूँ, माँ-पिताजी से मिल आती हूँ| मन नहीं लगता ना क्या करें!
बड़ी इच्छा होती थी.... काश हमारे यहां भी पढ़ाई लिखाई की वैसी सुविधा होती, जैसे दूसरी जगहो पर है| इधर ही बढ़िया काम मिल जाता, तो कहीं जाना नहीं पड़ता माँ-पिताजी के साथ रह लेते| मेरे पिताजी पहले हाई स्कूल के शिक्षक थे, बाद में रामगढ़वा हाई स्कूल के प्रिंसिपल बने और फिर गोपाल साह विद्यालय, मोतिहारी के प्रिंसिपल रहते हुए रिटायर हुए हैं| फिर सामाजिक कार्यों में संलग्न हो गए, क्योंकि हमेशा से ही समाज के लिए अच्छा करना उनका स्वभाव रहा है| प्रिंसिपल रहते हुए भी अपने स्कूल को हर तरह से आगे बढ़ाने के साथ-साथ हमेशा ही सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहे हैं|
हमारा गांव कोरैया, आदापुर... 10-रक्सौल विधानसभा क्षेत्र में आता है| हमारे पिताजी ने हमेशा ही क्षेत्र को आगे बढ़ाने का सपना देखा है, क्योंकि मेरे पिताजी ने बड़े कष्ट से अपनी पढ़ाई पूरी की और हम भाई बहनों को बड़ी मेहनत और संघर्ष से डॉक्टर-इंजीनियर बना पाए हैं| इसीलिए मेरे पिताजी ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 10- रक्सौल विधानसभा क्षेत्र से खड़ा होने का निर्णय लिया| हम बच्चे भी गए चुनाव प्रचार में|
आइए, आपको वहां की जमीन पर ले चलते हैं| वोट तो 73 साल से वहां के लोग भी दे रहे हैं,लेकिन उधर जाते ही सुदूर देहात वाली फीलिंग आने लगती है .....टूटी हुई सड़कें, बंद पड़े हुए, दिवारों पर पेड़ उगे हुए सरकारी स्कूल..... और अस्पताल तो है ही नहीं ,डायरेक्ट आदापुर... नहीं तो रक्सौल जहां जाते-जाते मरीज बेदम हो जाए| कहीं कोई कोल्ड स्टोरेज नहीं, कोई सार्वजनिक शौचालय नहीं|
खैर.... जैसे ही छौड़ादानों से आदापुर की ओर आगे बढ़ते हैं नहर रोड से मुलाकात होती है, जो बहुत ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था में कराहती हुई मिलती है और साथ में मिलता है नहर, जो 25 सालों से कभी साफ नहीं हुआ और कहीं टूटा, कहीं सूखा, कहीं पानी जमा होकर छोटे तालाब के रूप में निष्क्रिय पड़ा है.... किसानों की किसी काम का नहीं| नहर भी बदहाल और किसान भी |
आइये आगे चलते हैं कहने को तो भारत के बहुत सारे गांव खुले में शौच मुक्त हो गए हैं, पर आज भी वहां लोग खेतों और सड़कों के किनारे शौच करते हैं.... करे भी क्या ? गांव में शौचालय के पैसे तो आए पर सबके बने नहीं ,गबन हो गए और शहर में सार्वजनिक शौचालय बनवाने की तरफ किसी नेता,विधायक, मंत्री का कोई ध्यान ही नहीं गया| हां गांव में बिजली चली गई है, जगह-जगह नल-जल वाले पाइप बिछे थे लेकिन उसमें कभी पानी नहीं आता |
उस स्कूल में भी गए जहां कभी मेरे पिताजी ने पढ़ाई की थी.... अब वह उत्क्रमित हाई स्कूल हो गया है, बस नाम का| शिक्षक मात्र 2-3....आप ही बताएं 2-3 शिक्षकों के भरोसे एक प्राथमिक विद्यालय ढंग से नहीं चलता, हाई स्कूल क्या चलेगा! पर आश्चर्य चल रहा है... 100% उपस्थिति भी होती है रजिस्टर में, क्योंकि लड़कों को मोतिहारी में पढ़ने भेज दिया जाता है (जो थोड़े पैसे वाले हैं, बाकी पढ़ाई छोड़ देते हैं) लड़कियां अपने घरों में काम-काज सीखती हैं और ट्यूशन वगैरह से थोड़ी बहुत पढ़ाई के बाद फेल-पास हो जाती हैं.....भगवान भरोसे| सरकारी डिग्री कॉलेज एक भी नहीं है... जैसे वहां के लोगों को ऊंची पढ़ाई करने का कोई हक ही नहीं है| धनी लोग तो बाहर भेजकर अपने बच्चों को पढ़ा लेते हैं ....गरीब कहां जाएं!!
लोग कलपते मिले कि... डॉक्टर बबुनी, ईंहां एगो अस्पताल हो जाए दुख दूर हो जाए...| छौड़ादानों से लेकर आदापुर तक कोई सरकारी अस्पताल नहीं... कोई छोटा-मोटा क्लीनिक भी नहीं ....लोगों की जान झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे हैं! वोट देते हैं फिर भी असहाय पड़े हैं!
किसान चाचा लोग मिले…. बोल रहे थे, अपनी ही आलू हम ₹5 रुपए में बेचे थे और ₹50 में खरीद कर खा रहे हैं, क्योंकि हमारे यहां कोल्ड स्टोरेज नहीं है| हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या का कोई समाधान नहीं निकल रहा... क्योंकि मंत्रियों, सरकारों को कोई मतलब नहीं है और जनता की समझ से परे हैं| इन सबके अलावा इस क्षेत्र में ना ही कृषि पर आधारित कोई उद्योग है, ना ही कोई अन्य उद्योग| लोग काम की खोज में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, गुजरात जाने को मजबूर हैं|
आदापुर छोटा ही सही पर बहुत पुराना शहर है और आज अपनी चमक पूरी तरह से खो चुका है| कोई विकास नहीं| नवयुवक रोजगार के अभाव में भटक रहे हैं|
आप ही बताइए क्या आदापुर के लोगों को विकास का कोई हक नहीं है? क्या वहां के लोग आगे भी वैसे ही दर-दर की ठोकरें खाते रहेंगे जैसे 73 सालों से खाते आ रहे हैं| बिल्कुल नहीं, पर जवाब वहां के लोग खुद हैं वह जो वहां के वोटर हैं| वही अपनी प्रतिनिधि चुनते हैं और लोकसभा तथा विधानसभा में पहुंचाते हैं| मैं वहां के लोगों से पूछती हूं क्या आपको अपने क्षेत्र को आगे नहीं बढ़ाना? अगर बढ़ाना है तो सही प्रतिनिधि का चुनाव करना होगा, तभी यह समाज आगे बढ़ेगा| जब तक रक्सौल विधानसभा और आदापुर क्षेत्र के लोग धर्म-जाति, पार्टी के नाम पर वोट देते रहेंगे... पैसों पर अपने वोट बेचते रहेंगे तब तक क्षेत्र कभी आगे नहीं बढ़ेगा...। उन्हें आगे आना ही होगा और अपने भविष्य को देखते हुए शिक्षित एवम् बेदाग प्रतिनिधि का चुनाव करना होगा| हमारे पिताजी ने पहली बार चुनाव लड़ा| हमने अपनी बात आम लोगों तक पहुंचाने की पूरी कोशिश की... पर शायद अभी कहीं कुछ कमी थी| हम भले ही जीत ना पाए, पर हारे कतई नहीं हैं| उस क्षेत्र को आगे बढ़ाने का हर संभव प्रयास जारी रहेगा| हमारे पिताजी उन तक पहुंचते रहेंगे और उनके लिए काम करते रहेंगे| आपका, हमारे गांव और रक्सौल विधानसभा क्षेत्र के सभी लोगों को... अपार प्रेम और स्नेह के लिए तहे दिल से धन्यवाद!
आपकी
डॉ प्रीति उषा