सिसक रहीं है आज बेटियॉं, चलना राह है मुश्किल हो गया;
डर ने है डेरा डाला,
है नर-पिशाचो का पहरा बढ़ गया।
हर जगह हैं गिद्ध
भटकते, महानुभावों के भेष में;
नारियॉं हर रोज घूंट
रहीं, लक्ष्मीबाई के देश में।।
है कोई नहीं पूछनेवाला, पर...................................
पूछती हैं भारत माता, क्या ये धरती फिर से गुलाम है?
क्या हमारे भावनावों
का, ये गहराता हुआ-सा शाम है?
झूल रहे भविष्य देश के, लटक रहें हैं
अन्नदाता;
पैरों में पड़ रहीं बेड़ियॉ, लुटेरे बने हैं भाग्य विधाता।
अर्थव्यवस्था चौपट हो गई, तिल-तिल करके देश बिक रहा;
समाजवाद के देश, है पूॅंजीवाद अब क्यों टिक रहा।।
नहीं रहें अब गाॉंधी-शास्त्री....................................
है कोई नहीं पूछनेवाला, पर..................................
पूछती हैं भारत माता, क्या ये धरती फिर से
गुलाम है?
क्या हमारे भावनावों का, ये गहराता हुआ-सा शाम
है?
पत्रकारिता मृत हो गयी, सर्प बैठे हैं भेष बदल के;
डस रहें हैं चैनल वाले, हिन्दु-मुस्लिम विष नाम पे।
अंधा कर दिया है देश को, जनता मूक-बधिर हो गई।।
दिनकर की भाषा भूल गये सब............................
है कोई नहीं पूछनेवाला, पर.................................
पूछती हैं भारत माता, क्या ये धरती फिर से गुलाम है?
क्या हमारे भावनावों
का, ये गहराता हुआ-सा शाम है?
बहुत हो गया मौन तुम्हारा, सपूतों ऑखों की पट्टी खोलों;
आजाद करो अब जिह्वा अपनी, मुह खोलो कुछ तो बोलो।
आवाज बनो तुम, पिड़ित भारत की, गुलामी की बेड़ियॉ तोड़ों;
ना समझोगे तो, दास बनोगे,क्योकि..........................
है कोई नहीं पूछनेवाला, पर...................................
पूछती हैं भारत माता, क्या ये धरती फिर से
गुलाम है?
क्या हमारे भावनावों का, ये गहराता हुआ-सा शाम है?
है ये देश गणतंत्र तुम्हारा, भविष्य न अपना बिकने देना;
नेता न चुनना गलत मनुष्य को, सोच-समझ कर वोट डालना।
गोडसे मार रहे हर रोज, कुचल-कुचल कर सच्चाई को;
लकवा मार गया है जैसे, समाज की अच्छाई को।।
तानाशाहों से तुम्हें बचाने, गॉंधीजी अब नहीं आयेगें;
तुम्हें खुद हीं ऑंधी बनना होगा, क्योंकि..................
है कोई नहीं पूछनेवाला, पर.................................
पूछती हैं भारत माता, क्या ये धरती फिर से
गुलाम है?
क्या हमारे भावनावों का, ये गहराता हुआ-सा शाम
है?
________डॉ प्रति उषा
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