अचानक ! एक विपदा आयी,
जीवन धारा को बांध दिया।
घरो में हम कैद हो गये, खुद
से ही खुद को थाम लिया।।
अस्पताल भर गया, भर गये मरघट;
बांध
दुखों का टूट गया।
भले ही हम बर्बाद हो गये,
पर रूको........
दोस्तो थको नहीं, आशायें
अभी जिन्दा हैं।
इन टूटे भग्नावेशों
में भी, बची हुई ईंटें चुन लेंगे;
सपनों का भारत हम
बुन लेंगे।
बहारें फिर
आयेंगी, जीवन भी चहकेगा;
मेहनत रंग लायेगी, गुलशन फिर महकेगा।
बस, थोड़ा सा सब्र
करो............
दोस्तो थको नहीं, आशायें
अभी जिन्दा हैं।
धर्म-जाति ऊच-नीच
के मतभेदों को छोड़कर,
आओ हम मिलकर पिछड़ेपन के जंजीरो को तोड़ते हैं।
ये अंधकार भी मिट
जायेगा, थोड़ी और सांसे जोड़ते हैं।।
बढ़ो आगे
......थोड़ी कोशिश करते हैं......
दोस्तो थको नहीं,
आशायें अभी जिन्दा हैं।।
--------- डॉ प्रीति उषा
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